इसके पश्चात मंच पर उपस्थित संत समाज द्वारा गुरुदेव के श्री चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए तिलक एवं मौली द्वारा गुरुदेव का पावन वंदन किया गया इस भावपूर्ण संबंध को उजागर करते हुए साध्वी रूपेश्वरी भारती जी ने बताया कि गुरु की कलाई पर साधक द्वारा बांधी गई मौली गुरु और शिष्य के अटूट प्रेम को दर्शाती है और गुरु के चरणों में अर्पित सुमन भक्त के मन को सुंदर कर देते हैं। आगे उन्होंने ने एक शिष्य के जीवन में साधना का उद्देश्य बताते हुए कहा कि जब इस घोर कलयुग में एक व्यक्ति का मन संसार की मलीनता में फंस कर रसहीन हो जाता है तो भक्त अपनी हृदय भूमि को पुनः गुरु प्रेम में सींचने के लिए एकनिष्ठ होकर अपनी साधना को गुरुदेव पर लक्षित करता है।
आगे साध्वी जी ने बताया कि जैसे एक पौधे की जड़ को जितना अच्छे से सींचा जाता है, उतना ही पौधा फलवित होता है ठीक उसी प्रकार जब एक साधक भी अपने जीवन के आधार साधना को गुरु भक्ति में लगाता है तो उसका जीवन स्वतः ही पौधे की तरह ऊंची उड़ान भरता हुआ फलवित होता जाता है। अंत में पंडाल में उपस्थित समस्त साधकों ने पूर्ण सद्गुरु द्वारा प्रदत्त ब्रह्मज्ञान की अग्नि को अपने जीवन में प्रकाशित करने के लिए अपने जीवन की प्राण वायु साधना को बलवित करने का संकल्प लिया।
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