रावण वध के साथ हुई कथा संपन्न
कथा के अंतिम दिवस में श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास साधवी सुश्री दिवेशा भारती जी ने सुंदरकांड प्रसंग के अंतर्गत भक्त हनुमान जी की जीवन गाथा को प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि हनुमान जी एक गुरु की भूमिका निभा रहे है जो मां जानकी जी का मिलन प्रभु श्री राम जी के साथ करवाते हैं। अर्थात हनुमान जी इस दिव्य लीला के द्वारा हमें समझा रहे हैं कि मात्र गुरु ही है जो आत्मा और परमात्मा का मिलन करवा सकते हैं। श्री राम जी सेतु का निर्माण करवाते हैं। जिस पर चढ़कर सारी वानर सेना लंका पहुंचती है। श्रीराम और रावण में भीषण युद्ध होता है जिसमें रावण मरता है और श्रीराम विजय होते हैं। रावण अहंकार का प्रतीक है। आज जितने भी झगड़े हैं वह सब अहंकार के कारण ही हैं जब मानव अपने भीतर राम के दर्शन करेगा तभी अहंकार रूपी रावण का वध होगा और झगड़े समाप्त होंगें। आज का भारतीय यदि रामायण को अपने जीवन में उतारेगा तभी शांति की स्थापना हो सकती है। आज अधर्म के साए तले तमाम ऐसी कुरीतियां बुराइयां पनप रही हैं, जो एक इंसान को इंसान नहीं रहने देती बल्कि उन बुराइयों ने इंसान को एक दानव की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है l आज एक बार फिर जरूरत है समाज को ऐसी अवतरित सत्ता की जो दिशा विहीन मानवीय इकाई को दिशा प्रदान करके समाज में शांति को स्थापित कर सके l महापुरुष जब धरती पर आते हैं तो उनका एकमात्र लक्ष्य होता है परम सत्य का साक्षात्कार जन-जन को करवाना वे जीवन पर्यंत इस कार्य के लिए तत्पर रहते हैं ब्रह्म ज्ञान के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति के भीतर अविनाशी आत्मा को दिखा देते हैं यही वह संजीवनी औषधि है जिससे वे जन समाज को पाप ताप से मुक्त करते है। सभी प्रभु भक्तों के लिए लंगर की भी व्यवस्था की गई। कथा को प्रभु की श्री आरती के गायन के साथ विश्राम दिया गया।
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