एक राजा जंगल में प्यास से व्याकुल हुया तो एक वृक्ष की डाली से पानी की बून्द गिर रही थी। राजा ने पत्तों का दोना बनाकर उन बूंदों से दोने को भरने लगा, जब दोना भर गया तो एक तोते ने दोने को गिरा दिया, राजा ने दूसरी बार दोना भरा तो फिर तोते ने गिरा दिया पर तीसरी बार राजा ने दोना गिराने पर तोते को चाबुक से मार दिया। राजा डाली के पास गया, जहां से पानी टपक रहा था तो राजा के पाँवो की जमीन खिसक गई, वहाँ एक भयंकर अजगर सोया हुआ था और उस अजगर के मुँह से लार टपक रही थी, राजा जिसको पानी समझ रहा था वह अजगर की जहरीली लार थी, राजा के मन में पश्चॉत्ताप का समन्दर उठने लगता है, हे प्रभु, मैने यह क्या कर दिया जो पक्षी बार बार मुझे जहर पीने से बचा रहा था, भ्रम वश मैंने उसे ही मार दिया।
संगत जी, संत यही बार बार समझाते हैं के आपके साथ जो होता है उसमे हमारा भला छुपा होता है लेकिन हम संतों के वचन और सत्संग ध्यान से नहीं सुनते*
जय श्री लक्ष्मीनारायण